नई दिल्ली. किसी भी खिलाड़ी का सपना अपने खेल में नंबर-1 बनना होता है. इसके लिए खिलाड़ी जी-तोड़ मेहनत करते हैं और कई बार सबसे प्रिय चीजें भी त्याग देते हैं. लेकिन ऐसे कम ही उदाहरण हैं, जब कोई महिला खिलाड़ी अपना खेल सुधारने के लिए ब्रेस्ट सर्जरी कराए. यही नहीं, उसे इसका फायदा भी मिले और वो ना सिर्फ आगे जाकर दुनिया की नंबर-एक खिलाड़ी बने, बल्कि वो खिताब भी जीते, जो हर किसी का सपना होता है.
रोमानिया की सिमोना हालेप (Simona Halep) मौजूदा विलंबलडन चैंपियन हैं. उन्होंने 2019 में जब यह खिताब जीता तो ऐसा करने वाली रोमानिया (Romania) की पहली खिलाड़ी बनीं. उनके स्वागत में पूरा बुखारेस्ट उमड़ पड़ा. अब इस साल कोरोना वायरस (Coronavirus) के विंबलडन स्थगित हो गया है. हालेप इससे निराश तो हैं, लेकिन वे खुद को सांत्वना देते हुए कहती हैं कि चलो कोई बात नहीं एक बार जीतकर दो साल तक चैंपियन कहलाउंगी. हालेप 2018 में फ्रेंच ओपन भी जीत चुकी हैं.
सिमोना हालेप जूनियर नंबर-1 रह चुकी हैं और सीनियर लेवल पर भी उन्हें प्रतिभाशाली खिलाड़ी माना गया. उन्होंने एक-दो साल उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन किया. फिर उनके मूवमेंट धीमे होने लगे. इसकी वजह कुछ ऐसी थी, जो उन्हें असहज कर देता था. आखिरकार महज 17 साल की उम्र में उन्होंने ऐसा निर्णय लिया, जो किसी महिला के लिए आसान नहीं होता. उन्होंने 2009 में ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी कराई. यह फैसला उनके खेल के लिए टर्निंग प्वाइंट बना. इसके बाद उन्होंने ना सिर्फ बड़े टूर्नामेंट जीते, बल्कि दुनिया की नंबर-1 महिला टेनिस खिलाड़ी भी बनीं. हालेप ने नंबर-1 बनने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था, ‘अगर मैं खिलाड़ी नहीं होती, तब भी यह सर्जरी कराती. वैसे यह सबसे बड़ी कीमत है, जो मैंने नंबर-1 बनने के लिए चुकाई है.’
4 साल की उम्र से टेनिस खेला
सिमोना हालेप का जन्म 1991 में रोमानिया के कोंस्तान्ता में हुआ. सिमोना जब चार साल की हुईं तब उनका बड़ा भाई टेनिस खेलने जाता था. सिमोना भी साथ जाने लगीं. शुरुआती दो साल वे सप्ताह में दो बार जातीं. जब वे छह साल की हुईं तब भाई ने टेनिस खेलना छोड़ दिया. दूसरी ओर, सिमोना छह साल की होने के बाद स्थानीय कोच लोन स्टान से रोज टेनिस सीखने लगीं. सिमोना के पिता क्लब लेवल के फुटबॉलर हैं. उन्होंने ही अपने बच्चों के दिल में खेल के प्रति दिलचस्पी जगाई.
16 साल की उम्र में घर छोड़ा
सिमोना हालेप जब 13 साल की थीं, तब उन्होंने आईटीएफ जूनियर सर्किट में खेलना शुरू कर दिया. उन्होंने खिताब भी जीते और दुनिया की नंबर-1 जूनियर खिलाड़ी बन गईं. 15 साल की उम्र में वे प्रोफेशनल खिलाड़ी बन गईं. 16 साल में वे कोंस्तान्ता छोड़ राजधानी बुखारेस्ट में रहने लगीं, ताकि बेहतर प्रैक्टिस कर सकें.
2014 में फ्रेंच ओपन का फाइनल खेला
सिमोना हालेप ने करियर के शुरुआती दो-तीन साल लोअर- ग्रेड के टूर्नामेंट ही खेले. रोमानिया की यह खिलाड़ी 2009 में पहली बार किसी ग्रैंडस्लैम (फ्रेंच ओपन) में उतरीं. हालांकि, उन्हें किसी ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचने के लिए 2014 तक इंतजार करना पड़ा. वे इस साल ऑस्ट्रेलियन ओपन के क्वार्टर फाइनल और विंबलडन के सेमीफाइनल और फ्रेंच ओपन (French Open) के फाइनल में पहुंचीं.
ग्रैंडस्लैम खिताब का सपना 2018 में पूरा
सिमोना हालेप का ग्रैंडस्लैम खिताब जीतने का सपना 2018 में पूरा हुआ. उन्होंने इस साल फ्रेंच ओपन का खिताब जीता. इसके बाद जब वे बुखारेस्ट पहुंचीं तो करीब 15 हजार लोग उनके स्वागत के लिए सड़कों पर उमड़ आए. एक साल बाद हालेप ने सेरेना विलियम्स को हराकर विंबलडन (Wimbledon) की ट्रॉफी अपने नाम की. इस बार बुखारेस्ट में उनका स्वागत 30 हजार लोगों ने किया. रोमानिया के पत्रकार एड्रियन टोका कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि हालेप देश की सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी हैं.
2017 में पहली बार बनीं नंबर-1
सिमोना हालेप को अपने पहले ग्रैंडस्लैम खिताब का इंतजार भले ही 2018 तक करना पड़ा हो, लेकिन वे डब्ल्यूटीए (WTA) रैंकिंग की चोटी पर 2017 में ही पहुंच गईं. सिमोना अक्टूबर 2017 को पहली बार नंबर-1 महिला खिलाड़ी बनीं. वे करीब ढाई महीने चोटी पर रहीं. इसके बाद डेनमार्क की कैरोलिना वोज्नियाकी ने नंबर-1 का ताज हथिया लिया. हालेप ने एक महीने के भीतर दूसरी बार नंबर-1 की चोटी पर कब्जा किया. इस बार वे करीब एक साल तक नंबर-1 रहीं.
वायरस के कारण ओलिंपिक में नहीं खेलीं
ओलिंपिक में खेलना और मेडल जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है. लेकिन लगता है कि सिमोना हालेप और ओलिंपिक का रिश्ता ठीक नहीं है. 2012 में लंदन ओलिंपिक में वे अपना पहला ही मैच हार गईं. 2016 के रियो ओलिंपिक में उन्होंने जीका वायरस के कारण हिस्सा नहीं लिया. अब टोक्यो ओलिंपिक में उन्हें अपने देश की ओर से फ्लैगबियरर होना था, लेकिन कोरोना वायरस ने इन खेलों को एक साल टालने के लिए मजबूर कर दिया. अब टोक्यो ओलिंपिक अगले साल होंगे.
कोरोना से लड़ाई के लिए दिए 25 लाख
दुनिया के अन्य देशों की तरह रोमानिया में भी कोरोना वायरस ने कहर बरपा रखा है. यहां अब तक 11 हजार से अधिक लोग कोविड-19 (Covid-19) से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 631 लोगों की मौत हो चुकी है. सिमोना हालेप ने कोरोना से लड़ाई के लिए करीब 25 लाख रुपए दान किए हैं. इसके अलावा उन्होंने अस्पतालों को मेडिकल इक्विपमेंट खरीदने को भी पैसे दिए हैं.
सड़क पर सेना, जिंदगी थम गई है
सिमोना हालेप कोरोना वायरस के कहर के बारे में कहती हैं कि इससे बचाव के लिए रोमानिया में लॉकडाउन (Lockdown) है. 65 से अधिक उम्र के लोगों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध हैं. इससे कम उम्र के लोग जरूरी काम होने पर बाहर निकल सकते हैं. हालेप कहती हैं, ‘सड़क पर सेना मार्च कर रही है. इसलिए ज्यादातर लोग घरों में हैं. मैं ऐसे मामलों में सतर्क रहती हूं. इसलिए मैं भी घर में हूं.